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9 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

यदि आप केयरगिविंग इंडस्ट्री में करियर बनाने की कोशिश कर रहे हैं या देश में तेजी से बढ़ रहे नर्सिंग कॉलेजों में दाखिला लिए हों और आने वाले समय में एक पेशेवर केयरगिवर के रूप में विकसित देशों में जाने का आपका इरादा है, तो यह लेख अवश्य पढ़ें। इस मामले में घरेलू स्तर पर हालात अच्छे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय रूप से चीजें इतनी अच्छी तो नहीं, लेकिन निराशाजनक भी नहीं हैं।

2024 में पहली बार विभिन्न देशों में 70 चुनाव होंगे। इनमें 4.2 अरब वोटर्स हैं। यानी नए साल में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी वोट देने वाली है। प्रवासी विरोधी भावनाएं बढ़ने के चलते यूरोपियन यूनियन (ईयू) के वार्ताकारों पर ईयू के कम से कम 27 देशों में प्रवासियों के प्रवाह को सीमित करने का दबाव था, जहां आगामी गर्मियों में चुनाव होने जा रहे हैं।

उन्होंने इस बुधवार को एक महत्वपूर्ण सौदा किया। समझौते का उद्देश्य अपात्र शरणार्थियों को निर्वासित करना और प्रवासियों के प्रवेश को सीमित करना है। दिलचस्प बात यह है कि 4 दिसम्बर को ब्रिटेन के गृह सचिव जेम्स क्लेवरली ने आप्रवासन में कटौती के लिए अपनी सरकार की नई योजना की घोषणा की।

यह केयरगिविंग वर्कर्स के पति/पत्नी और बच्चों को यूके आने से रोकेगी। सरकार को लगा कि प्रवासियों की संख्या में कटौती के लिए यह एक उपयुक्त श्रेणी है। 2023 में सितम्बर तक 1,43,990 लोग केयरगिवर के रूप में यूके पहुंचे, जबकि उनके साथ आए परिजनों की संख्या 1,73,896 थी। यह एक कारण हो सकता है कि सरकार ने यह नई नीति बनाने के बारे में सोचा होगा।

दुनिया के शीर्ष दस बुजुर्ग होते देशों में से एक होने के नाते यूके का सोशल केयर उद्योग आज चरम पर है। कई लोगों का मानना है कि बुजुर्ग हो रही आबादी की देखभाल करने वालों की कमी ब्रिटेन के सामने मौजूद सबसे बड़े संकटों में से एक है। आज वहां कम से कम 1,52,000 केयरगिवर्स की जगह खाली है और इस नए नियम से सरकार पर इन रिक्तियों को भरने का दबाव बढ़ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यूके केयरगिविंग की तुलना में अधिक वेतन और कम तनाव वाली बहुत नौकरियां भी प्रदान करता है।

दूसरी तरफ, पेट-पैरेंट्स भी- जिन्होंने लॉकडाउन में अकेलेपन से बचने के लिए पेट-इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया था- अब अपने पालतू पशुओं की जरूरतों पर पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं। तीन से चार साल के इन जानवरों को देखभाल की जरूरत है और उनके पेट-पैरेंट्स इसके लिए प्रति माह चार से पांच हजार रु. खर्च कर रहे हैं।

वर्तमान में उनकी आबादी लगभग 4 करोड़ है और दिलचस्प बात यह है कि टियर-2 और टियर-3 शहरों वाले भी अपने पालतू पशुओं की देखभाल करने वालों की तलाश कर रहे हैं। इस उद्योग के साल-दर-साल 9 से 10% बढ़ने की सम्भावना है। कोविड से पहले, पालतू जानवर अपने मालिक के काम से लौटने तक बंद घर में अकेले रहते थे। लेकिन कोविड के दौरान वर्क-फ्रॉम-होम सुविधाओं से उन्हें चौबीसों घंटे ह्यूमन-अटेंशन की आदत लग गई है।

यदि आप पेशेवर नर्स नहीं हैं और केवल मनुष्यों को दी जाने वाली चिकित्सा देखभाल के लिए ही प्रमाण पत्र अर्जित किया है तो चिंता न करें। घर पर बुजुर्गों के लिए डे-केयर सेंटर्स या अपने घर पर बुजुर्गों की देखभाल करने वालों के कारण केयरगिविंग पेशेवरों की जरूरत बढ़ गई है।

हालांकि यूके ने देखभालकर्ताओं के परिजनों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं, लेकिन वे निश्चित रूप से पेशेवर केयरगिवर्स के प्रवेश को नहीं रोक सकेंगे, क्योंकि उनके पास सशक्त हेल्थकेयर प्रणालियां हैं और केयरगिवर्स इनका हिस्सा हैं।

फंडा यह है कि पूरी दुनिया में आज केयरगिविंग इंडस्ट्री बढ़ रही है, और भारत कोई अपवाद नहीं है, जिसने देखभाल करने वालों को प्रवेश देना शुरू कर दिया है। चूंकि दुनिया का केयर जॉब मार्केट अभी कुछ परेशानियों का सामना कर रहा है, इसलिए हालात अनुकूल होने तक घरेलू बाजार पर ही ध्यान केंद्रित करें।

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