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- Palki Sharma’s Column Does Pakistan Now Want To Improve Relations With Us?
पिंजौर9 घंटे पहले
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![IPL Auction 2 पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost - Dainik Bhaskar](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2023/12/22/11686158594_1703187956.jpg)
पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
पाकिस्तान में धीमी गति से एक घटनाक्रम आकार ले रहा है। एक अजीब चुनाव और उससे भी अजीब रणनीति! वहां के राजनेताओं का अचानक भारत के प्रति हृदय परिवर्तन हो रहा है। यह संसार के नौवें आश्चर्य की तरह है। अधिकांश पाकिस्तानी राजनेताओं के पास दो ही चालें होती हैं- या तो वे फौज की जी-हुजूरी करते हैं या हर चीज के लिए भारत को गुनहगार ठहराते हैं।
लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है भारत को दोष मत दो, पाकिस्तान की परेशानियां उसकी अपनी पैदा की हुई हैं। और वे सही हैं। पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति के लिए आप भारत को दोष नहीं दे सकते। लेकिन मियां शरीफ की इस ईमानदारी का क्या राज है? याद रखें, यह कोई एकमुश्त टिप्पणी नहीं है।
शरीफ पिछले कुछ समय से इसी रौ में बोल रहे हैं। इसकी शुरुआत उनके लंदन-प्रवास से हुई थी। वहां से लौटने के बाद उन्होंने अपनी पहली रैली में इस बात को जारी रखा। और तब से वे रुके नहीं हैं। जब भी शरीफ को माइक मिलता है, वे भारत के बारे में बोलने लगते हैं।
सितम्बर में उन्होंने कहा था, भारत चंद्रमा पर लैंडिंग कर चुका है, जी-20 की सफल मेजबानी कर चुका है। यह सब पाकिस्तान को करना चाहिए था… जब वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे, तो उनके पास एक अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था। आज भारत के पास 600 अरब डॉलर का भंडार है।
ये सब कहां से आया? अक्टूबर में, शरीफ ने कहा, हम अपने पड़ोसियों के साथ लड़ते हुए तरक्की नहीं कर सकते। उन्होंने इस महीने की शुरुआत में भी यही बात दोहराई। और इस हफ्ते उन्होंने फिर कहा, हमारे पड़ोसी चांद पर पहुंच गए हैं, हम तो अभी तक ठीक से जमीन पर खड़े भी नहीं हुए। यानी उनकी बातों में एक पैटर्न साफ है।
अलबत्ता यह साफ नहीं है कि उनका इरादा क्या है। क्या नवाज शरीफ भारत की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाना चाहते हैं? लेकिन किस दम पर? पाकिस्तान में फरवरी में चुनाव होने जा रहे हैं। उम्मीद है कि शरीफ खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के शहर मनसेहरा से चुनाव लड़ेंगे।
यह शरीफ का गढ़ है। लेकिन यहां मजेदार तथ्य यह है कि तकनीकी रूप से शरीफ चुनाव नहीं लड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट ने उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा रखा है और उसे अभी तक वापस नहीं लिया गया है। हां, उनकी कुछ जेल सजाएं रद्द कर दी गई हैं, लेकिन रोक कायम है।
तो क्या शरीफ अब भी चुनाव लड़ सकते हैं? उन्हें सेना का आशीर्वाद तो प्राप्त है। इस बात की भी पूरी सम्भावना है कि कानूनी बाधाएं उनके रास्ते में नहीं आएंगी। तो मान लें कि शरीफ चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं और प्रधानमंत्री बन जाते हैं। तब भी क्या वे भारत के बारे में अच्छी बातें कहते रहेंगे? यह फौज पर निर्भर करता है।
अगर फौज उनसे राजी नहीं होती तो वो उनको रोक सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया है। हो सकता है शरीफ सेना की मंजूरी से ही भारत की ओर मदद का हाथ बढ़ा रहे हों। लेकिन क्यों? क्योंकि पाकिस्तान दुनिया भर में ही अपने रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश में लगा हुआ है।
इस सप्ताह उसके सेना प्रमुख अमेरिका में थे। वे लॉयड ऑस्टिन और एंटनी ब्लिंकन जैसे शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों से मिले। उन्होंने एक बयान भी जारी किया, जिसमें कहा गया, ‘पाकिस्तान खुद को कनेक्टिविटी-हब के रूप में विकसित करना चाहता है। हालांकि वह गुटों की राजनीति से बचना चाहता है और सभी मित्र देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने में विश्वास करता है।’
तथ्य यह है कि पाकिस्तान चीनी कर्ज के बोझ तले दबा है। उसे चीन का ही एक प्रांत कहा जाने लगा है। यही पाकिस्तान गुटों की राजनीति से बचना चाहता है? वह पश्चिम से संबंध सुधारना चाहता है, क्योंकि उसे बेल-आउट की जरूरत है। इसमें अमेरिका उसकी मदद कर सकता है। लेकिन इसका भारत से क्या सम्बंध है? सम्बंध है।
आज भारत वैश्विक विकास का नया इंजन बन चुका है। वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। तो भारत की समृद्धि का असर उसके पड़ोसियों पर भी पड़ेगा। विशेषकर उन पर, जो रीजनल ट्रांसिट हब बनना चाहते हैं शरीफ इससे पहले भी भारत से पाक के रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर चुके हैं।
जब दिल्ली से लाहौर तक बस मार्ग खोला गया था, तब वे प्रधानमंत्री थे। 2014 में वे मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे। इसके अगले साल मोदी भी शरीफ की पोती की शादी में शरीक हुए। दोनों की जान-पहचान है। लेकिन जब भी शरीफ ने कुछ बेहतर करने की कोशिश की, फौज ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
इतिहास ने रावलपिंडी के जनरलों के दोहरेपन पर भारत को काफी सबक सिखाए हैं। हमारी पोजिशन स्पष्ट है- आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। इस मामले में तरक्की होती हो, तो ही शायद रिश्तों में सुधार आए।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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