[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Do You Apply ‘Snacking Theory’ To Your Problems?
2 दिन पहले
- कॉपी लिंक
![IPL Auction 2 एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2023/12/20/_1703019921.jpg)
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
चंद खुशकिस्मत लोग ही अपनी पसंद का फिटनेस रुटीन खोजकर सालों उसका पालन कर पाते हैं। इसलिए वे हर जगह उसका बखान करते हैं। बाकी लोग आकार में तो रहना चाहते हैं, लेकिन अन्य हालातों के चलते फिटनेस रुटीन का पालन करना मुश्किल हो जाता है।
हालांकि अब उनके लिए एक छोटी, लेकिन अच्छी खबर है, जो कि नियमित रूप से कठिन व्यायाम नहीं कर पाते। शोध में पता चला कि छोटे-मोटे वर्कआउट जैसे कि चंद सेकंड सीढ़ियां चढ़ना, फर्राटा दौड़, बस पकड़ने के लिए भागने से फिटनेस बेहतर होती है, बीमारी का खतरा कम होता है और उम्र बढ़ती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि 150-200 मिनट की साप्ताहिक कसरत के मुकाबले इन गतिविधियों को व्यस्त शेड्यूल में शामिल करना आसान है। उदाहरण के लिए इस शोध में 12 किशोरों को लिया गया, जो कि कसरत नहीं करते थे। उनसे हफ्ते के तीन दिन, दिन में तीन बार सीढ़ियां चढ़ने (करीब 60) के लिए कहा गया।
जब छह सप्ताह बाद उनके ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता के आधार पर मापा तो पाया कि उनकी एयरोबिक फिटनेस 5% बेहतर हुई। ये परिणाम बिल्कुल वैसे ही थे, जैसे हफ्ते में तीन दिन 30 मिनट तेज चहल-कदमी से परिणाम मिलते हैं। वे इस नए अभ्यास को ‘एक्सरसाइज़ स्नैक्स’ कहते हैं! जब दिए समय में एक विषय पर जानकारी जुटाने की बात आई तो मुझे ‘स्नैकिंग थ्योरी’ अच्छी-काम की लगी। जैसे, जब अच्छे नंबर्स से पास एक हालिया इंजीनियरिंग ग्रैजुएट ने कहा कि बीते 8 महीनों में उसे नौकरी नहीं मिली है, तो संभावित कारणों पर ध्यान देने के लिए मैंने कुछ समय मांगा।
उसके बाद छह दिन तीन अंतरालों में दिन में सिर्फ 30 मिनट उसके तनाव पर काम किया, विभिन्न मानदंडों पर पूरे हफ्ते दस-दस मिनट के लिए तीन बार उससे बात की। अंततः पाया कि वह सफल क्यों नहीं हुआ। जिसका मतलब है कि निष्कर्ष तक पहुंचने में मैंने अपने व्यस्त शेड्यूल में ‘स्नैकिंग थ्योरी’ लागू की।
1. वह इस तथ्य से अनजान था कि इस साल की शुरुआत में दिग्गज कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर छंटनी के बाद अमेरिका स्थित तकनीकी विशेषज्ञों की भरमार थी। वे उसके सीधे प्रतिस्पर्धी थे, जो कि भारतीयों के बराबर वेतन पर काम करने के लिए तैयार थे और उनके पास अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी था।
2. उसने नौकरी के लिए सिर्फ आईटी क्षेत्र देखा और वैश्विक क्षमता केंद्रों के साथ वैकल्पिक चीजें देखने की जहमत नहीं उठाई। भारत एेसे तकरीबन 1800 केंद्रों का गढ़ है और 13 लाख लोगों को नौकरी देता है। एेसी 55% से ज्यादा कंपनियां बेंगलुरु के बाहर हैं।
3. वह यह नहीं देख पाया कि गैर-तकनीकी क्षेत्र जैसे बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, बीमा, मीडिया, खुदरा व उपभोक्ता व्यवसाय, जीवन-विज्ञान व स्वास्थ्य सेवा, इंजीनियरिंग,आर एंड डी और ऊर्जा बड़ी संख्या में शुरुआती स्तर के कर्मचारियों को काम पर रख रहे हैं।
4. हालांकि उसे पता था कि कंपनियां एेसी प्रतिभाएं तलाश रही हैं जिनमें सॉफ्ट स्किल जैसे संप्रेषण, समस्या सुलझाने, टीमवर्क, भावनात्मक बुद्धिमत्ता का संयोजन हो, लेकिन उसने इनमें से किसी में महारत हासिल नहीं की और साक्षात्कारकर्ताओं को नहीं दिखाया।
5. और आखिर में उसकी सबसे बड़ी गलती यह रही कि जरूरी अनुभव हासिल करने के लिए किसी छोटी कंपनी में प्रशिक्षु बनने के बजाय, वह अपने भाग्य को कोसते हुए इतने महीनों तक घर पर बेकार बैठा रहा। याद रखें कि बड़ी कंपनियां इसकी सराहना करती हैं कि आप विभिन्न ज्ञान हासिल करने में खुद को कैसे व्यस्त रखते हैं। किसी भी उद्योग के बारे में अपने ज्ञान को समय-समय पर मजबूत करने के लिए छोटे-छोटे काम करना भी ‘स्नैकिंग थ्योरी’ कहा जा सकता है।
फंडा यह है कि उभरते हालातों में खुद को फिट करना है तो अपनी जरूरतों और जिस दौर से गुजर रहे हैं, उनके मुताबिक स्नैक्स (अपनी समस्या तक पहुंचने के छोटे-छोटे तरीके) चुनें।
[ad_2]
Source link